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निजी अस्पताल अब लूट केंद्र बनते जा रहे है अस्पताल, दवाईदुकान, पैथोलॉजी लैब के कमीशन खेल मे लुटा जा रहा मरीज

निजी अस्पताल अब लूट केंद्र बनते जा रहे है
अस्पताल, दवाईदुकान, पैथोलॉजी लैब के कमीशन खेल मे लुटा जा रहा मरीज

सौसर/रामाकोना :- हमारे देश के करीबन 75% अस्पताल निजी क्षेत्र में हैं। मात्र पच्चीस प्रतिशत अस्पताल सरकार द्वारा संचालित किए जाते हैं, जिनमें भी अधिकतर अस्पतालों में डॉक्टर, नर्स एवं गुणवत्ता वाले चिकित्सीय संसाधनों का अभाव रहता है। ऐसे में सुविधा एवं संसाधनों से परिपूर्ण निजी अस्पतालों की मनमानी स्वाभाविक है। इनकी मनमानी भरे रवैये पर नकेल कसने के लिए सरकार को निजी अस्पतालों में हो रही सारी जांचों, उपलब्ध दवाइयों, सर्जरी, परामर्श तथा हो रहे हर प्रकार के इलाज के लिए दरें तय कर देनी चाहिए। निजी अस्पतालों में उपलब्ध आईसीयू बेड, वेंटिलेटर इत्यादी सुविधाओं की यथास्थिति ऑनलाइन होनी चाहिए। इन नियमों का उल्लंघन करने पर निजी अस्पताल पर कार्रवाई होनी चाहिए। इसके साथ-साथ सरकार को सरकारी अस्पतालों की संख्या, वहां पर डॉक्टरों, नर्सों एवं आधुनिक संसाधनों में वृद्धि पर ध्यान देना चाहिए। निजी अस्पतालों के डॉक्टरों की फीस भी निर्धारित की जानी चाहिए, वे कोई दूसरे ग्रह से नहीं आए हैं। हालत यह है कि आजकल कुछ डॉक्टर तो तत्काल टिकट की तरह तत्काल मरीजों को देखने की तीन गुनी फीस लेते हैं।

हमारे यहां सारे निजी अस्पतालों में सरकारी आदेशों की अनदेखी करना और मनमानी रकम वसूल करना एक आम सी बात है। शीर्ष सरकारी अफसरों और निजी अस्पतालों के मालिकों की सांठगांठ से सारे कायदे-कानून ताक पर रख दिए जाते है और जनता को भ्रमित करने के लिए नेताओं द्वारा प्राइवेट अस्पतालों की लूट खसोट का रोना शुरू कर दिया जाता है जबकि पक्ष-विपक्ष के नेताओं को अंदर का सारा खेल पता होता है। आरोप-प्रत्यारोप से असल मुद्दे को भटकाने की सस्ती राजनीति का ही परिणाम है जो आज निजी अस्पताल लूट का केंद्र है। सरकार अपनी चिकित्सा सेवाओं की बेहतरी के लिए हर बजट में करोड़ों रुपयों आवंटित करती है, फिर भी प्राइवेट अस्पतालों के आगे सरकारी अस्पताल उन्नीस ही दिखाई पड़ते हैै। इससे जुड़े समाचार आए दिन सामने आ रहे हैं। सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों का नहीं मिलना और जांच मशीनों का अभाव सामान्य बात है। इन सभी कारणों से मरीज निजी अस्पतालों में जाते हैं, जहां उनका आर्थिक शोषण किया जाता है। निजी अस्पताल में मरीजों को इलाज के लिए सभी प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध रहती हैं। सरकारी अस्पतालों में इलाज व सर्व सुविधा तत्काल नहीं मिलना भी इसका बहुत बड़ा कारण है।

निजी अस्पतालों में इलाज के नाम पर मरीजों से तगड़ी फीस वसूली जाती है और मिल-बांटकर खाने के इस खेल में कई लोग शामिल होने से इस मनमानी पर रोक नहीं लग पाती है। बेचारा मरीज मजबूर है, क्योंकि उसे लगता है कि निजी अस्पतालों में ही सही इलाज होता है। निजी अस्पताल प्राइवेट कारपोरेट कंपनियों की तरह चलाए जा रहे हैं। समाज की सेवा करने के बजाय इनका मकसद सिर्फ मुनाफा कमाना है। निजी अस्पताल लाभ को महत्व देते हैं। आम तौर पर इनके मालिकों का प्रभावशाली नेताओं से सीधा संबंध होता है। ऐसे में ये बिना किसी डर के मनमाने तरीके से अस्पताल चलाते हैं। एक ओर सरकारी अस्पतालों की खस्ताहाल व्यवस्थाओं की तस्वीरें आती रहती है, वहीं दूसरी ओर निजी अस्पतालों के तथाकथित सर्वसुविधा युक्त व्यवस्थाओं के नाम पर लूट खसोट की कहानी भी रोज उजागर होती रहती है। निजी अस्पतालों में बेहतर इलाज के नाम पर मरीजों से वसूली आम है। निजी अस्पताल सरकारी दांवपेच से बचना जानते हैं। समाज सेवा व सीएसआर के नाम पर दी जाने वाली राशि से ये अपनी छवि धूमिल होने से बचा लेते है। निजी अस्पतालों की मनमानी पर अंकुश नहीं लगने का प्रमुख कारण सरकारी कारिंदों की मिलीभगत का होना है । रक्षक ही जब भक्षक बन जाते हैं तो सभी जनहित की योजनाओं का धरातल पर उतरना मुश्किल हो जाता है । चिरंजीवी योजना बेहतर योजना है किंतु निजी अस्पतालों पर अंकुश नहीं लगाया गया तो यह भी कारगर नहीं हो पाएगी। निर्दोष जनता को इसका खमियाजा भुगतना पड़ता है।
ऐसा ही कुछ सौसर तहसील मुख्यालय तथा आस पास के नगरो एवं ग्रामीण अंचलो मे निजी क्लिनिक संचालक, दवाई दुकान संचालक तथा पैथोलॉजी लैब संचालक आपसी कमीशन के खेल मे मरीजों कि कमाई पर डाका डालने का काम किया जा रहा है.

*ऐसी कई दवाई दुकान के संचालको ने कर रखा डॉक्टरों को हायर*
नगर तथा आस पास के क्षेत्र मे ऐसे कई दवाई दुकान संचालक है जो अपनी कमाई करने के उद्देश्य तथा अपनी दुकान ज्यादा चल सके इसलिए सप्ताह मे एक दिन सावनेर से डॉक्टरो को हायर करते है जिससे डॉक्टर को मरीज मिल जाते है तथा दवाई दुकान संचालको कि दवाई तथा पैथोलॉजी लैब संचालको को सैंपल भी मिल जाते है बाद मे दवाई दुकान,डॉक्टर,तथा लैब संचालक अपने अपने कमीशन का हिसाब लगाते है जिसका भर मरीज को ही देना होता है.

विधायक विजय चौरे ने विधानसभा मे उठाया था मुद्दा
कुछ सप्ताह पूर्व क्षेत्र के विधायक विजय चौरे ने अस्पताल सम्बंधित मुद्दा विधानसभा मे उठाया था जिसके बाद भी सरकार गहरी नींद मे है इस पर किसी प्रकार कि कोई कार्यवाही नहीं कि जा रही है.
जबकि सौसर विधानसभा मे 100 बेड का अस्पताल है बावजूद इसके यहाँ से मरीज इलाज करने के बजाय सर्वाधिक रेफर किये जाते है.

सर्वाधिक शासकीय डॉक्टर अपनी ड्यूटी के समय करते प्रैक्टिस
सरकार से मानदेय लेने के बावजूद सरकार का काम करने कि बजाय अपना निजी क्लिनिक खोल पैसे कमाने का खेल खेला जा रहा है.
हालांकि कुछ डॉक्टर आज भी सेवा का काम कर रहे है जबकि कुछ डॉक्टरो ने केवल कमाई का साधन बना दिया है.

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